अभिमानी चन्द्रमा
अपनी कांति की शीतलता से,
खुद को शोभित कर,
तू,
बड़ा इतराता है।
अपनी मिथ्या सुन्दरता से,
खुद को वशीभूत कर,
तू,
बड़ा इठलाता है।।
है!
अभिमानी चन्द्रमा,
तू,
अपने किस गुण से,
सबसे सुंदर कहलाता है?
मानव के अज्ञानवश,
चन्द्रमा,
इस जग में सबसे सुंदर कहलाये है।
उनके इस मिथ्या भ्रम को मिटाने,
जग को सच बतलाने,
कृष्ण रूप धर,
मेरे प्रिय राम आये है।
श्याम वर्ण अति शोभित,
नयनाभिराम,
आजानुबाहु,
अतुलनीय
शीतल मन,
सुन्दर चितवन को देख,
सब देवो ने अपने माथ नवाए है।
है!
अभिमानी चन्द्रमा,
देखो,
मेरे प्रभु श्री राम आए है।
सुन्दरता की अनुपम परिभाषा,
अपनी मर्यादा से,
सबको वे पढ़ाते है।
जगत को,
जीवन की सुंदरता दिखाने,
लीला,
मेरे प्रभु हरी रचाते है।
मात - पितु प्रेम, गुरु भक्ति,
भ्रात प्रेम, प्रेम आसक्ति,
मित्र प्रेम,पितृ भक्ति,
नारी सम्मान,भक्त आसक्ति,
दुष्ट संहार, शरणागत प्रेम आसक्ति।...
खुद को शोभित कर,
तू,
बड़ा इतराता है।
अपनी मिथ्या सुन्दरता से,
खुद को वशीभूत कर,
तू,
बड़ा इठलाता है।।
है!
अभिमानी चन्द्रमा,
तू,
अपने किस गुण से,
सबसे सुंदर कहलाता है?
मानव के अज्ञानवश,
चन्द्रमा,
इस जग में सबसे सुंदर कहलाये है।
उनके इस मिथ्या भ्रम को मिटाने,
जग को सच बतलाने,
कृष्ण रूप धर,
मेरे प्रिय राम आये है।
श्याम वर्ण अति शोभित,
नयनाभिराम,
आजानुबाहु,
अतुलनीय
शीतल मन,
सुन्दर चितवन को देख,
सब देवो ने अपने माथ नवाए है।
है!
अभिमानी चन्द्रमा,
देखो,
मेरे प्रभु श्री राम आए है।
सुन्दरता की अनुपम परिभाषा,
अपनी मर्यादा से,
सबको वे पढ़ाते है।
जगत को,
जीवन की सुंदरता दिखाने,
लीला,
मेरे प्रभु हरी रचाते है।
मात - पितु प्रेम, गुरु भक्ति,
भ्रात प्रेम, प्रेम आसक्ति,
मित्र प्रेम,पितृ भक्ति,
नारी सम्मान,भक्त आसक्ति,
दुष्ट संहार, शरणागत प्रेम आसक्ति।...