...

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एक राह पे ठहर जाऊँ!
हर राह से गुज़र जाऊँ!
एक राह पे ठहर जाऊँ।

देखूँ में एक पल के लिये,
हर एक नज़ारे को!
पर तुझको में जब देखूँ,
पलके भी न झपकाऊँ।

हर वक़्त में रहता हूँ,
अब तेरे ख्यालों में!
तन्हाई में भी खुद से,
में बात किये जाऊँ।

हर शख्स को मन्ज़िल की,
बस चाह चलाती है!
एक में हूँ जो तेरी धुन में,
हर वक़्त चलें जाऊँ।

बुलबुल को ज़रा देखो,
गाती है वो सावन मे!
यूँ ही गाने लगूँ में तो,
जो एक तेरी झलक पाऊँ।

हर-वक़्त गुज़रता है,
ये वक़्त भी गुज़रेगा!
ये बात मगर उसको,
कैसे में समझाऊँ।

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