...

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कुछ चाहते अधूरी रह गई
कुछ चाहते अधूरी रह गई
तेरे साथ बितानी थीं ये जिंदगी
अब ये किसी और की कर्ज़दार हो गई

कुछ चाहते अधूरी रह गई
तेरा हाथ पकड़ कर कुछ और दूर चलना था
वो मजील भी रुसवा हो गई

कुछ चाहते अधूरी रह गई
रोज़ सुबह तेरी बाहों से उठ कर जगना था
ये फरयाद भी अनसुनी हो गई

कुछ चाहते अधूरी रह गई
तुझसे मिलने का सिलसिला चलता रहना था
वो दुआ भी खारिज हो गई
क्या करे जिंदगानी हमारी महरूम हो गई
कुछ चाहते अधूरी सी हो गई
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