परों को खोल, सुए आसमान कर मुझको
परों को खोल सुए आसमान कर मुझको
कभी तो खुद से रिहा मेरी जान कर मुझको
सियाह रात में तू मुझमें धूप जैसा खिल
शदीद धूप में तू सायबान कर मुझको
यकीन बनके किसी रोज तू उतर मुझ में
फिर अपनी जात से तू बदगुमान कर मुझको
मैं गर्म रातों में तुझमें महक महक उट्ठूं
तू सर्द रातों में सो जाए तान कर मुझको
मैं चाहता हूं तिजोरी से तू निकाल मुझे
और अपने दोनों ही हाथों से दान कर मुझको
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कभी तो खुद से रिहा मेरी जान कर मुझको
सियाह रात में तू मुझमें धूप जैसा खिल
शदीद धूप में तू सायबान कर मुझको
यकीन बनके किसी रोज तू उतर मुझ में
फिर अपनी जात से तू बदगुमान कर मुझको
मैं गर्म रातों में तुझमें महक महक उट्ठूं
तू सर्द रातों में सो जाए तान कर मुझको
मैं चाहता हूं तिजोरी से तू निकाल मुझे
और अपने दोनों ही हाथों से दान कर मुझको
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