...

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क्या है प्रेम ...
धर्म मे आध्यात्म मे,
फरवरी की मदहोश करती शाम में
या साहित्य की क्लिष्ट भाषाओं में

विरह में, मिलन मे
त्याग मे या पाने मे
क्या है प्रेम..?
प्रेम की जटिलता ने मुझे हमेशा उलझाया

फिर एक दिन
एक निपट गंवार औरत को देखा मैने
उसके पति की पहली फसल से
कतर ब्योंत कर बचाए हुए पैसों से
सबसे लुका छिपा कर
लाई गई कानबाली
उसके कानों को चूम
कपोलों को छू रही थी

पति की अनुपस्थिति मे भी उसकी
उपस्थिति दर्ज कराती
उस औरत की आंखों के काजल मे
हंस रहा था प्रेम ..

गेरु से ,चूने से
टेसू के फूलों से
बादल के रंगों से एक स्त्री द्वारा
दिवाल पर उकेरती सुन्दर आकृतियों मे
दिखा मुझे फिर एक बार
प्रेम का रंग

गर्मी की रातों में
पसीने मे उमस मे
थकान मे ,बोझिल आंखों में
जोरू के हाथों में
ताड़ के बेने से
पति के पसीने सुखाती उंघती आंखों मे दिखा मुझे
फिर प्रेम का चटख रंग

तुलसी के चौबारे पर
सांझा की दिया बाती मे
अम्मा की प्रार्थना मे
ओसारे पर फैली बाबा की कड़क आवाज मे
मिला मुझे प्रेम ..

प्रेम
तुम्हे छू कर आती फागुनी हवाओं का
मुझे छू कर गुजरना
और मेरे कपोलों पर हया का इंगुरी रंग बिखरना
ये भी तो प्रेम ही है न....!!

-Aparna