...

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दो पल का आशिक
रिश्ता वो पुराना था,
मोहब्बत का ज़माना था।
नामुमकिन था सफ़र वो,
फिर भी निभाना था।

दूर –दराज मेरी सोच से कहीं दूर,
प्यार भरपूर मगर पाने को मजबूर।
समझौता किया फिर जैसे–तैसे,
बड़ा ही समझदार था मेरा हुजूर।

अरसे बीत गए, आस भी टूट गई,
मोहब्बत मगर फिर भी कम न हुई।
हताश थे मगर उम्मीद को खोया नहीं,
वो कोई पल न था जिसे याद करके...