कैसा ये शहर है।
कैसा ये शहर है,
जिसमे हर एक डगर नई सी लगे।
हर मोड़ एक नया रंग देता,
हर घर एक नई ही छाव जो देता। ....कैसा ये...
ढूंढे यहां बस अपनों को,
कोई खोजें परायो में खोए अपनों को,
हर इंसान एक नई चाह देता। ....कैसा ये...
अंजान ये मोड़ भी नई रांहो की दस्तक देता,
तो कभी यही राहें जानी सी होकर भी अंजानी सी कशिश...
जिसमे हर एक डगर नई सी लगे।
हर मोड़ एक नया रंग देता,
हर घर एक नई ही छाव जो देता। ....कैसा ये...
ढूंढे यहां बस अपनों को,
कोई खोजें परायो में खोए अपनों को,
हर इंसान एक नई चाह देता। ....कैसा ये...
अंजान ये मोड़ भी नई रांहो की दस्तक देता,
तो कभी यही राहें जानी सी होकर भी अंजानी सी कशिश...