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शायरी- चांंद
चांंद पाने की चाह तो कर ली,
भूल बैठा कि मैं जमीं का हूं।
चांंद को देख टीस उठती है,
जाने किस्मत का है वो कौन धनी।
था तो वो माहताब ही जैसा,
खूबसूरत मगर पंहुच से परे।
है कमी आरज़ू न कोशिश में,
चांद मिल जाये वो नसीब कहाँ।
बाम पर चांद देर तक था रुका,
मैं ही ज़ीने पे रह गया अटका।
© शैलशायरी
भूल बैठा कि मैं जमीं का हूं।
चांंद को देख टीस उठती है,
जाने किस्मत का है वो कौन धनी।
था तो वो माहताब ही जैसा,
खूबसूरत मगर पंहुच से परे।
है कमी आरज़ू न कोशिश में,
चांद मिल जाये वो नसीब कहाँ।
बाम पर चांद देर तक था रुका,
मैं ही ज़ीने पे रह गया अटका।
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