...

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भूल गयी
भूल गयी

एक बात कहनी थी भूल गयी!
कोई मेरा भी था,
कहनी थी,
भूल गयी!
कभी से लेकर अभी तक की
शिकायत करनी थी,
भूल गई!
आते - आते आ गयी लबों पे बात ,
कहनी थी ,
भूल गयी !
कैसे -कैसे सपने,
रातों में रोज आये,
कहनी थी,
भूल गयी !
मेरी हमदम थीं,
ये बेडशीटें,
सारे आँसू सोख जाते हैं,
कहनी थी
भूल गयी !
ताने सुनकर भी,
रिश्तों में वफादारी रखी ,
कहनी थी ,
भूल गयी!
अजनबी सावन,
की बूॅदों के साथ,
अरमान जमीन पर गिरे कहनी थी,
भूल गयी !
नदी सी प्रवाहित "प्रति" बहती रही,
बहती है,
कहनी थी ,
भूल गयी !
सागर से तो मिलना,
लिखा रहता है हमेशा से,
कभी अपने आप से मिलनी थी ,
भूल गयी !
जिन्दगी मेरी थी,
मौज मस्ती से जीनी थी ,
नेह- सुधा पीनी थी,
पर अफसोस,
भूल गयी!

रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है|

@पाण्डेय जी