...

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तलब तेरी..
वक्त का दौर कुछ यूं गुज़र गया,
तुम पास रहे मेरे मगर ये प्रेम बिखर गया,
एक बंधन मुक्त हुआ दूजा बंधनों में बंध कर रह गया, जंजीरे होती तो मुक्त हो जाता मैं भी एक रोज़,

ये रूह मुक्त हो भी तो कैसे तेरे प्रेम से,
तेरी यादों ने जकड़ रखा है अब भी ज़हन को मेरे,
एक तरफा बंधन रह गया है
जानते हुए भी बस तेरी खातिर जीने की
तलब अलग है..❣️
© khanabadosh_2207