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हमने कहां उगता सूरज देखा
हमने कहां उगता सूरज देखा
छोड़ गए वो बीच मझधार में
हमने तो बस स्याह अंधेरा देखा।।
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पल प्रतिपल नीर भरे रहे नैन,
प्यासे अधर प्यासे ही रहे..
हमने फिर कहां कोई कुआं देखा।।
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सुलगे मन की गीली लकड़ी,
तिलमिलाती सांझ सुनहरी..
हमने फिर कहां उठता धुंआ देखा।।
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हवाओं संग बदला मौसम ए मिजाज,
उफ्फ ठिठुरन घुस बैठी अंग अंग ज्यों....
के हमने फिर कहां नर्म नर्म रूआं देखा..।।
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लगा के मोहब्बत ए गुल दिली जमीं पे
तन्हाइयों की.....की आरजू बेहिसाब,
हमने फिर कहां झूठ का जुआ खेला।।
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दहलीज करते करते पार सनम,
नासूर बन गए ज़ख्म हज़ार पर.....
हमने फिर कहां मिटता चंदा देखा।।
..✍️Shashi Chandan "निर्झर "
© निर्झर लेखनी

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