...

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कश ज़िन्दगी इक किताब होति
काश ज़िन्दगी एक किताब होती
पढ़ सकती मैं की आगे क्या होगा
क्या पाऊँगी मैं और क्या दिल खोएगा
कब थोड़ी ख़ुशी मिलेगी, कब दिल रोयेगा
फार सकती मैं उन लम्हों को
जिन्होंने मुझे रुलाया हैं
जोड़ती कुछ पन्ने जिनकी
यादों ने मुझे हसाया हैं
हिसाब तो लगा पाती कितनी
खोई और कितनी पाई है
काश ज़िन्दगी एक किताब होती
वक़्त से आँखें चुराकर पीछे चली जाती
टूटे सपनों को फिर से अरमानों में सजाती
कुछ पल के लिए मैं भी मुस्कुराती
काश ज़िन्दगी सचमुच एक किताब होती
© Gunjan