...

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प्रियतम की तड़प


"सुनो प्रिये!
अब जब तुम
आ ही गयी हो मधुबन में,
बसंत की तरुणाई बनकर,
मेरी प्यास में प्रेम-रस
की गागर भर दो!
अपनी प्रेम-लताओं से
मेरी देह श्रृंगार कर दो,
अधरों के गुलाब पंखुड़ियों से
सूखे पतझड़ में नव-रंग भर दो!
© BhaskarDwivedi