...

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श्याम के दर्शन
श्याम तेरे चरणों के दर्शन को मैं तो प्यासी
अब चाहे ले जाओ द्वारिका, वृंदावन या काशी !

कार्य तेरे और निमित्त मैं बन जाती
बस तेरे ही लिए ऊठाऊ नित कर्म की सवारी !

विचार तेरे और लेखनी भी तेरी
मैं तो बस इस कलम को हाथ उठाती !

तेरा सब तुजे अर्पण मैं कर जाती
ये भौतिक जिवनी अब मुजे ना लुभाती !

दुख मे माथे पर तेरा हाथ ही पाती
तो क्यों नही में तेरी "बैरागन" बन पाती ?

मीरां जेसा नसीब कहाँ से पाती
जो बन जाती मैं तेरे चरणो की दासी !

श्याम तेरे चरणों के दर्शन को मैं तो प्यासी
अब चाहे ले जाओ द्वारिका, वृंदावन या काशी !
© श्रद्धा