...

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खामोशी संगिनी बन रही
टूट रहे अरमान सांसे बिखर रही!
ना जाने जिंदगी जीने से क्यू डर रही !!

लम्हा लम्हा सांसे उतर रही!
मन में भी अब उल झने ना रही !!

दर्द के समुंदर में अब मैं डूब रही!
खुद ही जीने की उम्मीद टूट रही !!

गम ही गम है अब खुशियां मर रही!
जीने से अब रूह भी मुकर रही!!

अश्कों का बहना आंखे ना अब रोक रही!
तन्हाई की तलब अब बेतहाशा उमड़ रही!!

आवाज भी अब हर किसी की चुभ रही!
खामोशी अब मेरी संगिनी बन रही !!
© Pearl