...

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saadgi
खूबसूरत हो तुम ही
क्यों सरगोशी* में बही जाती हो,
नूर हो तुम
मुझे हूरों सी नजर आती हो,

इस गुलशन* में
भवरों की तुम दीवानी हो,
मेरे मन के कोने में
तुम गुलाबो सी सयानी हो
सौरभ* है वो भी
सूरभी* हो तुम भी
क्यूं नहीं मेहक पाती हो

【खूबसूरत हो तुम ही
क्यूं सरगोशी में बही जाती हो,
नूर हो तुम
मुझे हूरों सी नजर आती हो,】

मैं सुखनवर* हूं तुम्हारा
तुम मेरी कलम हो,
मेरे जज़्बातों को शब्द देकर
मेरे आगोश में पनाह पाती हो,

खूबसूरत हो तुम ही
क्यूं सरगोशी में बही जाती हो,
नूर हो तुम
मुझे हूरों सी नजर आती हो।

सरगोशी-कानाफूसी
गुलशन-बघिया
(सुरभि-सौरभ)-खुशबू
सुखनवर-कवि