...

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◆ आख़िरी चिट्ठी ◆
नही जानता प्रिय !

तुम्हें लिखा हुई
कौन सी चिट्ठी ,,आखिरी
होगी ,
अमावस की रात होगी
या पूर्णिमा की ,
कुछ ज्ञात नही होगा !

पर ,,
चाहता हूँ उस प्रहर रात हो
पूर्ण प्रदीप्त " विधु " हो
वाएँ हाथ में हो
" धूम्रतालिका "
दाएं हाथ में वर्णांका हो
" विरह की कालिमा "
से भरी हुई ,
और साथ हो वो दैनिकी के
कोरे " कागद " !

अग्नि ज्वलंत पर हो पूर्ण
और जब वो आखिरी चिट्ठी
लिखने का वक्त आये ,,
तब बस लिख सकूं अपनी
कांपती " अग्रुओं" से
तुम्हें !

ततपश्चात वो सारी कविताएं
वो सारी दैनिकी , वो सारी
चिट्ठियां ,
कर दूंगा स्वाहा उस
" कृशानु " में ,

आखिर तुम्हें भी तो चाहिए होगी
मुक्ति !!


© निग्रह अहम् (मुक्तक )
【GHOST WITH A PEN 】