...

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बेवज़ह
बेवज़ह कुछ नहीं होता कोई तो वज़ह होती है
ये वज़ह ही इंसानों से इंसानियत को खोती है।

ये बात और है हम जान नहीं पाते समझते नहीं है
सोचते हैं अपनी जगह हम सही, गलत कुछ नहीं है।

इस सही गलत के बीच में ही कुछ गड़बड़ हो जाता है
और अंत में इंसान तन्हा बचता है रिश्ता ख़ो जाता है।
© Gaurav J "वैरागी"

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