....
दिल-ए-उम्मीद तोड़ा है किसी ने,
सहारा दे के छोड़ा है किसी ने
न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है,
कहाँ पे ला के...
सहारा दे के छोड़ा है किसी ने
न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है,
कहाँ पे ला के...