...

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चाहत थी जिसकी
जिसकी चाहत थी एक ज़माने से वो हमदम मुझे मिल गया
बेताब थी जिस चाहत को पाने के लिये वो हसीन चाहत कोई दामन में मेरे भर गया

मूर्जाये हुए फूल मेरी तन्हाई ओ के जैसे आके कोई खिला गया
बेरंग था जीवन मेरा उसके आने से पहले से आके जीवन में इन्द्रधनुषि रँग कोई भर गया

पत्थर की मूरत को अपने स्पर्श से कोई मोम सा पिघला गया
नशीली अपनी आँखो से इस दिल के आर पार कोई तीर प्यार का चला गया

दिल के चमन में आज़ भी बहार उनके दम से है ये समझा गया
चुपके से आके मेरे दिल की किताब में ग़ज़ल कोई रच गया

© Shagun