तुम बिखरे हो
मेरे यादों के पन्नों पर , तुम बिखरे हो कई रंगों में !
हाँ , अब...तो...बस...तुम ही हो !
जो बिखरे हो |
कई रंगों में बिखरे हो|
कभी खुशी के खिले उभारों में, कभी उदासी की गहरी स्याही में,
मैंने डूबे देखे ख्याल उसके, जज्बात उसके, और वो..हँसी भी |
तुम अपने ही सोच विचारों में,
हाँ ! बिखरे हो कई रंगों में |
मैंने कैद किये कई पल , और कई लम्हें इन कागज पे,
अब तुमको कितना ? क्या ? और दिखाएँ क्या ?
इन आँखों के सहारों से?
"कभी तुम बैठे मेज किनारे हो ढ़लते सूरज को तकते हुए
कभी खड़े दिवार सहारे हो अपनी हँसी को ढ़कते हुए
कभी खड़े हो...
हाँ , अब...तो...बस...तुम ही हो !
जो बिखरे हो |
कई रंगों में बिखरे हो|
कभी खुशी के खिले उभारों में, कभी उदासी की गहरी स्याही में,
मैंने डूबे देखे ख्याल उसके, जज्बात उसके, और वो..हँसी भी |
तुम अपने ही सोच विचारों में,
हाँ ! बिखरे हो कई रंगों में |
मैंने कैद किये कई पल , और कई लम्हें इन कागज पे,
अब तुमको कितना ? क्या ? और दिखाएँ क्या ?
इन आँखों के सहारों से?
"कभी तुम बैठे मेज किनारे हो ढ़लते सूरज को तकते हुए
कभी खड़े दिवार सहारे हो अपनी हँसी को ढ़कते हुए
कभी खड़े हो...