...

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कुछ अधूरा सा रह गया
छान लिया घर का कोना कोना,
कहीं पर कुछ भी खाली मिला नहीं।

कुछ अधूरा सा रह गया है,
क्या अधूरा रह गया पता चला नहीं।

बाहरी दुनिया में ढूँढ़ता रहा,
कभी ख़ुद के अंदर झाँककर देखा नहीं।

जो बरसों से विरान पड़ी थी,
कभी उससे दो चार बात करके देखा नहीं।

मृग तृष्णा में मारा मारा फिरता रहा,
कभी ख़ुद का सुध लेकर देखा नहीं।

कुछ अधूरा सा रह गया है,
क्या अधूरा रह गया पता चला नहीं।