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शिखर तरू से पूछ लो अब तो...!
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उतरो तरू से जल्द अभी यूं चढ़ो न ज्यादा दूर!
उतारने के लिए मित्र अब करो न मुझे मजबूर।

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शिखर तरू से पूछ लो अब तो!
तुम कितना ऊपर चढ़ पाओगे!

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ऊँचे घने हैं ये बहुत बहुत ऊपर तक!
अब तुम भी क्या अंदाज़ लगाओगे?

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सुबह सुबह उस निर्जन वन में,
तुम कब तक समय बिताओगे?

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हो रहा अंधकार भी अब तो,
क्या वापस घर को नहीं जाओगे?

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उतर जाओ अब जल्दी नीचे!
क्या अब भी नीचे नहीं आओगे?

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जल्द करो, करो देरी न ऐसे!
तुम कितना इंतज़ार कराओगे?

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कल जाना फिर निर्जन वन में!
आज करो बस! आ जाओ घर।

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वरना करेंगे घर में तलाश सभी!
तो उतरो जल्द, आ जाओ नगर।

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यहाँ समय बिताओ आकर घर में!
तुम जाओ यदि कल फिर से अगर।

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हो सके तो ले चलना मुझे वहाँ!
मैं रहूंगा संग तेरे हर डगर डगर पर।

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जब जाओ कभी भी निर्जन वन में!
तो यहाँ सबको बताकर जाया करो।

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वरना फिक्र करते हैं सभी लोग!
यूं सबका वक्त कभी न जाया करो।

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रूको न वन में बहुत देर तक!
तुम समय पर घर, आ जाया करो।

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ज़रा सोच भी लो परिवार भी है!
न देख तुम्हें वो, चिंतित ही हो जाएंगे।

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रखो खुद का भी ध्यान हमेंशा!
कुछ हो तुम्हें तो, वे भी रह नहीं पाएंगे।

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सुनो ध्यान से मेरी बात सखा!
देखो अब जब भी कभी तुम जाओगे।

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तब कोशिश करोगे मुझे बुलाने की!
तुम अपने संग मुझे भी वहाँ ले जाओगे।

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तो बस देख समझकर, सोच फिक्र कर!
जाओ जहाँ भी, सबको वाकिफ़ कराओगे।

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जो भी हो, जैसे भी हो, संध्या से पहले तुम;
आगे कदम बढ़ाओगे, लौट के घर को आओगे।

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और कोशिश भी करोगे आगे मुसलसल!
निर्जन वन में कभी भी, फिर न अकेले जाओगे।

-✍️ऋषि🔱

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