खुद से ही लड़ाई है
खुद से खुद की ही लड़ाई है,,,
"मैं " बनने की चोट हर स्त्री ने खाई है,,,
जब भी हुई वो खुद पर मेहरबान है,,
इस जमाने ने बड़ी खरी खोटी सुनाई है,,,
बेटी, बहन ,पत्नी, बहु हर भूमिका उसने बखूबी निभाई है,,,
कमी तो सिर्फ उसके ही हिस्से में आई है,,,
लांग कर जब चली है वो दहलीज घर आंगन की,,,
उसी घर ने उसे बदचलन ठहराया है,,
क्या ही कर ले वो हर एक खुश करने के लिए,,,
नाखुशी तो बस उसके ही हिस्से आई है,,
यही एक स्त्री की कहानी है।।।
"मैं " बनने की चोट हर स्त्री ने खाई है,,,
जब भी हुई वो खुद पर मेहरबान है,,
इस जमाने ने बड़ी खरी खोटी सुनाई है,,,
बेटी, बहन ,पत्नी, बहु हर भूमिका उसने बखूबी निभाई है,,,
कमी तो सिर्फ उसके ही हिस्से में आई है,,,
लांग कर जब चली है वो दहलीज घर आंगन की,,,
उसी घर ने उसे बदचलन ठहराया है,,
क्या ही कर ले वो हर एक खुश करने के लिए,,,
नाखुशी तो बस उसके ही हिस्से आई है,,
यही एक स्त्री की कहानी है।।।
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