बचपन का प्यार
उस घर में उसका बचपन था
उस घर में मेरी धड़कन थी
इस घर में मेरे आँसू थे
इस घर में मेरी तड़पन थी
उस घर के जैसा पावन तो
इस दुनिया में है कौन भला ?
उस घर की सौंधी छावन को
खुद गुड़ से मीठा नीम मिला
उस घर की कोरी दीद लिए
इस घर में सपने बुनता हूँ
सहर तक अपनी छत पर मैं
दिल के सन्नाटे सुनता हूँ
उस घर में जब वो रहती थी
इस घर में कटरी चलती थी
उस घर से जब वो जाती थी
गुमसुम कालिख छा जाती थी
उस घर के रीते कमरों में
उस दिन की यादें बसती हैं
जिस दिन डोली में बैठी वो
उस पल से आँखें जलती हैं
उस घर से दूरी रखकर भी
उस घर की ओर सलाम है
मेरी आयु दुआ लग जाए
बस यह शायर का पयाम है।।
© AbhinavUpadhyayPoet
उस घर में मेरी धड़कन थी
इस घर में मेरे आँसू थे
इस घर में मेरी तड़पन थी
उस घर के जैसा पावन तो
इस दुनिया में है कौन भला ?
उस घर की सौंधी छावन को
खुद गुड़ से मीठा नीम मिला
उस घर की कोरी दीद लिए
इस घर में सपने बुनता हूँ
सहर तक अपनी छत पर मैं
दिल के सन्नाटे सुनता हूँ
उस घर में जब वो रहती थी
इस घर में कटरी चलती थी
उस घर से जब वो जाती थी
गुमसुम कालिख छा जाती थी
उस घर के रीते कमरों में
उस दिन की यादें बसती हैं
जिस दिन डोली में बैठी वो
उस पल से आँखें जलती हैं
उस घर से दूरी रखकर भी
उस घर की ओर सलाम है
मेरी आयु दुआ लग जाए
बस यह शायर का पयाम है।।
© AbhinavUpadhyayPoet