आत्मसम्मान या विदाई
एक छोटी सी बस पर यूं
अपने घर को छोड़ आना
क्या ये कोई अच्छाई है
या फ़िर आत्मसम्मान
लगाकर दांव पर अपने
वहीं रूक जाने में भलाई है
कोई अन्जाना तो नहीं है इस
प्रचलित रीत से जग की
शोभा बना रखा है जिसे घर की
शोभा ही वास्तविक सच्चाई है
छोड़ो ना ये जग का संकोच
बोलो कुछ ये तुम्हारे
आत्मसम्मान की लड़ाई है
नाज़ुक हाथों में मेहन्दी रचाई हुई ,,
और आंखों में उसके...
अपने घर को छोड़ आना
क्या ये कोई अच्छाई है
या फ़िर आत्मसम्मान
लगाकर दांव पर अपने
वहीं रूक जाने में भलाई है
कोई अन्जाना तो नहीं है इस
प्रचलित रीत से जग की
शोभा बना रखा है जिसे घर की
शोभा ही वास्तविक सच्चाई है
छोड़ो ना ये जग का संकोच
बोलो कुछ ये तुम्हारे
आत्मसम्मान की लड़ाई है
नाज़ुक हाथों में मेहन्दी रचाई हुई ,,
और आंखों में उसके...