...

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कितनी ही बार ....
कितनी ही बार
सागर के किनारे
जब भी कभी .....

रेत पर
अपनी उँगली से ....
ज़रा लिखा
तुम्हारा नाम...

उतनी ही बार
लहरों ने मचलकर .....

अपनी सीमा रेखा को बढ़ा कर
ले गई उसे कही दूर ....

और मेरे पास रह गई सिर्फ़ ..!!!

तुम्हारी
स्मृति ..!!!!!!!
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