...

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प्रेम या सज़ा
तेरी ख़ाक मेरे सपनों का महल न बन जाए
तुम्हारा एक मज़ाक मेरी सज़ा न बन जाए

इश्क़ हो तो ही इकरार-ए-इश्क़ करना वर्ना
हिज़्र की शब किसी की ज़िंदगी न बन जाए

प्यार के बदले मिले प्यार तो ज़िंदगी है वर्ना
मिले न मोहब्बत तो कहीं शायर न बन जाए

मनहूसियत कह दिया है उसने मेरे प्यार को
इतने इल्ज़ामों से मेरा प्रेम घृणा न बन जाए;
© रद्दी_काग़ज़
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