...

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उसका बयान

कविता भी कभी-कभी
बयान देने पर अड़ जाती है तमाम आलोचकों को धत्ता बताते और दरकिनार करते वह चुनौती देती है उसीतरह जैसे एक औरत के सब्र की बाँध टूटने लगे भरभराकर और वह तमाम मर्यादाओं को ताक पर रख चीखनें-चिल्लानें लगे क्या आपनें देखा है
किसी औरत को
काली के विकराल रूप में
किसने कहा वह ठीक से बोल नहीं पाती
बकती है अनाप-शनाप ठीक हीं तो कह रहा है वह एक घायल औरत है आग और धुएँ से भरी उसकी जुबान लड़खड़ा रही है उसका बयान खून, खरोंच और पसीने से लथपथ है
वह एक बागी औरत है
पृथ्वी की भीतरी तहों में
खदबदाते लावे की तरह..
तुमने ठीक सुना
बयान देती एक कविता
और एक औरत
भाषा की तमीज और पकड़ में नहीं आती...

-----दया शंकर शरण