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शब्द ही वार करता है।।
जंग छिड़ी एक बार भईया, चाकू, तीर और तलवार में,
कौन देता है गहरा जख्म,बस एक ही वार में,
चाकू बोला घुस जाऊँ तो जिस्म को फाड़ देता हूँ,
जितनी नसे अंदर है,सब बाहर काढ़ लेता हूँ,
उस पर तीर तमककर बोली, गज़ब का वार मैं करती हूँ
कई बार घुसती नही, सीधा आर पार ही करती हूं,
तलवार भी ताव दिखाते बोली, वार तुझसे ज्यादा करती हूं,
आर-पार की बात छोड़, मैं जिस्म ही आधा करती हूँ,
सुनकर सबकी बाते,पीछे शब्द लगा मुस्काने,
कितने कितने जख्म दिए है सबको लगा गिनाने,
एक बार जो मैं निकलू तो महायुद्ध करवाता हूँ,
तुम जो इतना इतराते हो, तुम सबको मैं चलवाता हूँ,
मैं चाहूँ तो घर जोडूं, चाहे तो रिश्ते तोड़ दूँ,
शांत रहे रास्तो को भी,बर्बादी के रुख मोड़ दूँ,
मैंने तो भगवान को लड़वाया, इंसान की क्या बात है,
मेरे जख्मो के आगे तुम सबकी क्या औकात है,
बिना खून बहाये जो शब्द तार तार करता है,
चाकू तीर, तलवार,से ज्यादा शब्द ही वार करता है।।
#hindi #hindipoetry #sundaypost
© Vivek
कौन देता है गहरा जख्म,बस एक ही वार में,
चाकू बोला घुस जाऊँ तो जिस्म को फाड़ देता हूँ,
जितनी नसे अंदर है,सब बाहर काढ़ लेता हूँ,
उस पर तीर तमककर बोली, गज़ब का वार मैं करती हूँ
कई बार घुसती नही, सीधा आर पार ही करती हूं,
तलवार भी ताव दिखाते बोली, वार तुझसे ज्यादा करती हूं,
आर-पार की बात छोड़, मैं जिस्म ही आधा करती हूँ,
सुनकर सबकी बाते,पीछे शब्द लगा मुस्काने,
कितने कितने जख्म दिए है सबको लगा गिनाने,
एक बार जो मैं निकलू तो महायुद्ध करवाता हूँ,
तुम जो इतना इतराते हो, तुम सबको मैं चलवाता हूँ,
मैं चाहूँ तो घर जोडूं, चाहे तो रिश्ते तोड़ दूँ,
शांत रहे रास्तो को भी,बर्बादी के रुख मोड़ दूँ,
मैंने तो भगवान को लड़वाया, इंसान की क्या बात है,
मेरे जख्मो के आगे तुम सबकी क्या औकात है,
बिना खून बहाये जो शब्द तार तार करता है,
चाकू तीर, तलवार,से ज्यादा शब्द ही वार करता है।।
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