मन
कल्पना के लगा पर
मन करता अंतहीन सफर
कभी इस डगर
कभी उस नगर
अंतरिक्ष की भर उड़ान
ढूढ़े जिसे ज्ञान, विज्ञान
कभी बन जाता खग
नाप ले कभी, पूरा जग
हो जाता कभी प्रसन्न
उदास भी होता कभी मन
जहाँ तक पहुँचती नजर
पहुंच जाये मन, वहाँ लगा पर
मन करता अंतहीन सफर
कभी इस डगर
कभी उस नगर
अंतरिक्ष की भर उड़ान
ढूढ़े जिसे ज्ञान, विज्ञान
कभी बन जाता खग
नाप ले कभी, पूरा जग
हो जाता कभी प्रसन्न
उदास भी होता कभी मन
जहाँ तक पहुँचती नजर
पहुंच जाये मन, वहाँ लगा पर