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गलीज है, मेरा मुस्तकबिल
तेरे पलक के टूटे केश से, हाहाकारी का माहौल है ,
ऐसा क्या है आंखों में, जंगल उजड़ने का सवाल है...
संग टपकते है अश्क, हुज्रे से भी, तड़प-तड़पकर,
क्या फुरकतों के दिनों में, गुजरने का सवाल है...
खून के भिगोए अक्षरों में, सर-चोटी तक, तेरा नाम है,
और आप, अब भी हमें, आप कहते हो, कमाल है...
ये जो मोहब्बत है, किसी बुरी आत्मा का श्राप है,
जो पड़े हैं चक्कर में, दफन होने को तैयार हैं...
मुझपे तो संभालती नहीं, उस प्रेयसी की सुगंध भी,
एक ये होंठ है, जो खून चखने को तैयार हैं...
(खराब) गलीज है मेरा मुस्तकबिल,
जमीं को लिटाने से भी, इंकार है,,
क्या टांग लूं फंदा, आसमां में कहीं,
ऊपर तो सब तैयार हैं....
© #Kapilsaini
ऐसा क्या है आंखों में, जंगल उजड़ने का सवाल है...
संग टपकते है अश्क, हुज्रे से भी, तड़प-तड़पकर,
क्या फुरकतों के दिनों में, गुजरने का सवाल है...
खून के भिगोए अक्षरों में, सर-चोटी तक, तेरा नाम है,
और आप, अब भी हमें, आप कहते हो, कमाल है...
ये जो मोहब्बत है, किसी बुरी आत्मा का श्राप है,
जो पड़े हैं चक्कर में, दफन होने को तैयार हैं...
मुझपे तो संभालती नहीं, उस प्रेयसी की सुगंध भी,
एक ये होंठ है, जो खून चखने को तैयार हैं...
(खराब) गलीज है मेरा मुस्तकबिल,
जमीं को लिटाने से भी, इंकार है,,
क्या टांग लूं फंदा, आसमां में कहीं,
ऊपर तो सब तैयार हैं....
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