गलीज है, मेरा मुस्तकबिल
तेरे पलक के टूटे केश से, हाहाकारी का माहौल है ,
ऐसा क्या है आंखों में, जंगल उजड़ने का सवाल है...
संग टपकते है अश्क, हुज्रे से भी, तड़प-तड़पकर,
क्या फुरकतों के दिनों में, गुजरने का सवाल है...
खून के भिगोए अक्षरों में, सर-चोटी तक, तेरा...
ऐसा क्या है आंखों में, जंगल उजड़ने का सवाल है...
संग टपकते है अश्क, हुज्रे से भी, तड़प-तड़पकर,
क्या फुरकतों के दिनों में, गुजरने का सवाल है...
खून के भिगोए अक्षरों में, सर-चोटी तक, तेरा...