...

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"कोई मुझे लिखना सीखा दो"
कोई मुझे लिखना सीखा दो, मैं लिखना चाहता हूं।

जो कभी बोल नहीं पाया,
कागज़ पर उसे गढ़ना चाहता हूं।
देखी नहीं मैंने दुनिया बहुत,
मगर गवाह बनना चाहता हूं।
कोई मुझे लिखना सीखा दो, मैं लिखना चाहता हूं।

ज़िन्दगी में मैंने कुछ बड़ा नहीं किया,
अब कुछ करना चाहता हूं।
जो ताउम्र मोन रहे,
उनका स्वर बनना चाहता हूं।
कोई मुझे लिखना सीखा दो, मैं लिखना चाहता हूं।

जानता हूं बड़ा मुश्किल है,
मगर अब आगे बढ़ना चाहता हूं।
झूठ के इस सागर में,
सच का एक किनारा चाहता हूं।
कोई मुझे लिखना सीखा दो, मैं लिखना चाहता हूं।

दशक बदला, दौर बदले, इसां यहां हर रोज़ बदले,
अब मैं भी बदलना चाहता हूं।
मोबाइल के इस दौर में, किताब पढ़ना चाहता हूं।
कोई मुझे लिखना सीखा दो, मैं लिखना चाहता हूं।

नारी अब सम्मान नहीं, अवसर बन गई,
सम्मान तो छोड़ो, हवस का शिकार बन गई,
बस इस रिवाज को बदलना चाहता हूं।
कोई मुझे लिखना सीखा दो, मै लिखना चाहता हूं।

पापी रावण की नगरी में,
एक वीर हनुमान चाहता हूं।
जो लंका को राख करके राम राज्य स्थापित करे,
ऐसे संस्कार चाहता हूं।
कोई मुझे लिखना सीखा दो, मैं लिखना चाहता हूं।

© Prateek Bhardwaj ✍️

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