...

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हज़ारो किरदारो में वो सजता है ,
हज़ारो किरदारो में वो सजता है ,
वो इंसान खुद धुप में जलता हैं ,
ना जाने वो अपनी औलाद केे लिए क्या - क्या करता है ,
कभी हाथ फैलाता ‌हैं ,
तो कभी झुक जाता है ,
वो अपने स्वाभिमान को भी भुलकर ,
वहां भी कदम धर देता है ,
जहाँ उसका स्वाभिमान टूटता है ,
ना जाने वो अपनी औलाद केे लिए क्या - क्या करता है ,
हज़ारो किरदारो में वो सजता है ,
खुद का सपना तोड़ देता है ,
परिवार के सपनो को पूरा करता है ,
खुद खाली पेट रहकर परिवार का पेट भरता हैं ,
खाली जेब में भी मना नहीं कर पाता हैं ,
परिवार को हंसता देख खुद हंस लेता है ,
बाप का अहसान औलाद पर जिन्दगी भर रहता हैं ,
ना जाने वो अपनी औलाद केे लिए क्या - क्या करता है ,
हज़ारो किरदारो में वो सजता है ,
उस इंसान को कोई समझ नही पाता हैं ,
उसके जाने केे बाद घर में अंधेरा छॉ जाता है ,
जब मुश्किल में होता हूँ तो बाप याद आता है ,
बाप का किरदार लफ्जों में बया नहीं होता है ,
मेरी कलम हार गई , अब इससे आगे लिखा नहीं जाता है ,
तुम खुद भी समझ जाओ ना , बाप तुम्हारे घर में भी रहता है ,
ना जाने वो अपनी औलाद केे लिए क्या - क्या करता है ,
हज़ारो किरदारो में वो सजता है ,
© bhanwarmandan36