...

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ज़िंदगी में
कभी कभी कुछ समझ नहीं आता
कि क्या हो रहा है ज़िंदगी में ।
मन करता है कहीं चले जाए और
जितना चाहें उतना समय ले इसे समझने में ।
कोई रोके नहीं ,कोई टोके नहीं , कोई न कहे
कि ये गलत है करने में ,वो गलत है कहने में ।
किसी की परवाह न हो, लोगों को खोने का
डर न हो, तकलीफ़ न हो किसी को छोड़ने में ।
ये खून के रिश्ते, ये अहसान , ये आज्ञाकारिता ,
ये फ़र्ज़ आड़े आते है ये मेरी आज़ादी में।
एक लम्बे ध्यान में चले जाए और सोचे ये
कि आख़िर मकसद क्या है मेरे जीने में |
एक बार ही सही एक दिन ही सही कोई मुक्त
कर दे पक्षी बन उड़ना है आसमान में ।
और कभी भी वापिस न आऊं इस घुटन भरे
माहौल में, इस समाज में ,लोगों के दवाब में ।
© बावरामन " शाख"