...

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प्रेम क्या है..?
जमाना कहता है इश्क सच्चा क्या होता है,
मैने कहा इश्क अधूरा और प्रेम परिपूर्ण होता है,
इश्क में आशिकाना रो रो कर तड़पता है,
प्रेम हो राधा सा तो इंतजार में गुजरता है,
श्री वृंदावन शास्त्री जी कहते है की,
तुम नासमझों ने प्रेम शब्द को बदनाम कर रखा है,
अरे..तुमने तो हर एक चेहरे से इश्क लड़ा रखा है,
प्रेम में तो चाहतें दो तरफा होती हैं,
प्रेम वो है जिसमें स्त्री की इज्जत होती हैं,
प्रेम में झुकना उनकी सादगी होती हैं,
रंग साँवला ही सही चाहत भरपूर होती हैं,
प्रेम वो है जिसमें पाने की जिद्द तो होती हैं,
मगर...उसे हर पल नजरें देखना चाहती हैं,
प्रेम स्वार्थ से परे निस्वार्थः का अनूठा सागर है,
प्रेम में रह नही पाते एक दूजे के बगैर,
और बात आये अगर उसके लौट आने की,
तो प्रेम में पड़ा आशिक पूरी जिंदगी...