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अर्जुन का प्रतिशोध
अभिमन्यु वध से व्याकुल अर्जुन जयद्रथ की कायरता  सुनकर के क्रोध से जल उठा।
जल रही प्रतिशोध की आग को शांत करने चीखकर प्रतिज्ञा कर उठा ।
या तो सायंकाल तक जयद्रथ का मस्तक - धड़       से अलग कर दूंगा,नहीं तो जलती चिता पर अपने
प्राण त्याग दूंगा।।

सुनकर अर्जुन की प्रतिज्ञा कौरव खेमे में बेचैनी सी छा गई,
जयद्रथ को लगने लग गया अब तो मृत्यु आ गई।

चारों ओर विचारो का दौर सा शुरू हो गया ,
जयद्रथ सिंध भागने को आतुर हो गया।
किन्तु दुर्योधन ने उसे रोक लिया ,
उसके प्राणों की रक्षा का वचन दिया।

अब फैसले का दिन शुरू हो गया था ,
जयद्रथ तो मानो विलुप्त सा हो गया था।
जैसे - जैसे दिन बीतता जा रहा था,
पांडवो के हृदय में अंधेरा सा छा रहा था।

द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा को एक घेरा बना दिया,
घेरा जैसे मानो की...