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शिष्य होने का निरन्तर भाव रखना ही गुरु होना है!
एक श्रेष्ठ गुरु गुरु के भेष में शिष्य ही होता है,लगता गुरु है होता शिष्य है, अगर कोई गुरु स्वयं को अंदर से यह सूचना दे दे कि वह गुरु है तो उसके अंदर एक घातक बीमारी जन्म लेती है अज्ञानता की, फिर वह सीखने की सीढ़ी पर नहीं चढ़ पाता और स्वयं को समय के अनुसार अपडेट नहीं कर पाता, उसे केवल यही बात खत्म कर देती है कि वह गुरु है, इसलिए समझदार ज्ञानियों ने स्वयं को शिष्य माना, गुरु तो केवल अहंकार को तृप्त करने वाला शब्द मात्र है!
© ◆Mr Strength
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