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मर्यादा….
मर्यादा…
उस रात
हाँ, उस रात
जब मैं लिखने लगा था तुम्हारे ख़्यालों में
और
मचलने लगी थी मेरी कलम
किसी मनचले युवान की तरह
जो
लिख देना चाहती थी
तुम्हारी देह के हर एक उस तिल को
जिन्हें चूमा था मैंने कई दफ़ा
उन मुलाक़ातों के दरम्यान
ये कलम
बेबाक़ी से लिख देना चाहती थी
तुम्हारी देह की स्निग्धता
जिस पर
ना जाने कितने मर्तबा फिसले हैं ये लब
तुम्हारी नाभि के इर्द-गिर्द
वाले हिस्से पर
ना जाने
कितना कुछ
लिख देना चाहता था मैं उस रात
तुम्हारे ख़्यालों में बहक जाने के बाद
मगर
रोक देती है मेरी कलम को
और मेरे ज़हन को
मेरी ये मर्यादा
जो आज फिर
थाम रही है मेरी कलम को
फिर से
तुम्हारी देह में बहक जाने से ….
#हसरतों_के_दाग
© theglassmates_quote
उस रात
हाँ, उस रात
जब मैं लिखने लगा था तुम्हारे ख़्यालों में
और
मचलने लगी थी मेरी कलम
किसी मनचले युवान की तरह
जो
लिख देना चाहती थी
तुम्हारी देह के हर एक उस तिल को
जिन्हें चूमा था मैंने कई दफ़ा
उन मुलाक़ातों के दरम्यान
ये कलम
बेबाक़ी से लिख देना चाहती थी
तुम्हारी देह की स्निग्धता
जिस पर
ना जाने कितने मर्तबा फिसले हैं ये लब
तुम्हारी नाभि के इर्द-गिर्द
वाले हिस्से पर
ना जाने
कितना कुछ
लिख देना चाहता था मैं उस रात
तुम्हारे ख़्यालों में बहक जाने के बाद
मगर
रोक देती है मेरी कलम को
और मेरे ज़हन को
मेरी ये मर्यादा
जो आज फिर
थाम रही है मेरी कलम को
फिर से
तुम्हारी देह में बहक जाने से ….
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