...

6 views

एक कशिश जो थी मेरी....
एक कशिश जो तूफानों से थी मेरी,
अब खत्म होने को है।
शायद ये लहरें मेरी कश्ती डूबोने को है।
मुमकिन है कि मेरी निशानियां
भी न मिल पाए तुझे,
रात हो चली पूरी दुनिया अब सोने को है।
सुबह तक हो सके सिर्फ बाकी रहे,
ये मेरे निशां पैरों के गीली रेत पर।
मुट्ठी में उठाकर ज़रा लगा लेना
अपने गालों से इसे,
मैं भी महसूस करूँगी कि
तेरी आँखे अब रोने को है।
मुमकिन है ये वक्त तुझे ले जाए
तुझे उन लम्हों में,
उन खिड़कियों के पास जहाँ,
हमारी परछाइयाँ मिला करती थी ।
पर शायद वहां जाकर कुछ हासिल ना हो पाए क्योंकि वह खिड़कियां भी अब
जल्द ही बंद होने को है।
मैंने मनाया है अपनी तकदीर को
खुद को रुखसत होने के लिए,
गर तुम्हें होगी मेरी जुस्तजू तो
अलविदा कह कर चले जाना।
क्योंकि मेरी परछाइयां भी
अब जल्द ही दफन होने को है।

© shalini ✍️
#Life&Life
#Love&love💞