...

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एक कशिश जो थी मेरी....
एक कशिश जो तूफानों से थी मेरी,
अब खत्म होने को है।
शायद ये लहरें मेरी कश्ती डूबोने को है।
मुमकिन है कि मेरी निशानियां
भी न मिल पाए तुझे,
रात हो चली पूरी दुनिया अब सोने को है।
सुबह तक हो सके सिर्फ बाकी रहे,
ये मेरे निशां पैरों के गीली रेत पर।
मुट्ठी में उठाकर ज़रा लगा लेना
अपने गालों से...