...

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मानवता से मोहब्बत
न करें हमसे इश्क की बातें,
हम रहने वाले,
शहर गमों के,
होतीं जहाँ अश्रु की बरसातें।

पूर्णिमा क्या दे हमें सौग़ातें?
जहाँ बुनते जाले,
सभी एक करके,
थीं अमावस की अंधेरी रातें।

देखिए पूरी करने को ज़रूरतें,
पाँव के सहें छाले,
आंखो से छलके,
पीड़ा से जब होतीं मुलाक़ातें।

अधूरी रहीं जो कुछेक हसरतें,
जीवन वो दे डाले,
सभी कुछ भूलके,
चल,कर मानवता से मोहब्बतें।

© Navneet Gill