...

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इश्क़ का सफ़र..
इश्क़ भी अकेला नहीं
इस जहान में
दर्द और हिज्र हैं
पासबां इसके…

जब इश्क़ के सफ़र में
कुछ क़दम मैंने कुछ क़दम तुमने
साथ मिलकर बढ़ाए थे
हाथों में हाथ डालकर कुछ दूर
जो साथ निभाए थे

'मैं' और 'तुम' से 'हम' बने थे
फिर वो क़िस्से बन गए और
कहानियाँ बनीं।

तो फिर ये शायरी और नज़्म
कहाँ से बनी?
रिश्ते टूट जाने से
हमारे हाथ छूट जाने से
सफ़र में साथ छूट जाने से!
नज़्म बनी है हमारे
क़दम जो साथ थे उनके रूठ जाने से
'हम' से 'मैं' और 'तुम' बन जाने से!




© Mojiz Kalam