...

6 views

◆ बाली ◆
कविताओं के दृष्टिकोण से
चीखें आज भरूंगा मैं ,
शून्य सवार भूमि में अंगित
दृष्टि आज भरूंगा मैं ,

तज दूं बेशक प्राण शेष
लौट अवश्य मैं आऊंगा ,
जो देखेगा क्षम्य निगाह से
वो बाली बाली गायेगा !

मृत्यु को श्रंगार मानकर
उसको गले लगाऊंगा ,
कालिका तांडव होगा
जब मैं रणभूमि में आऊंगा ,,

जिस भूमि से निकलूं मैं
पीछे हाहाकार चले ,
किष्किंधा का राजा हूँ मैं
साथ मेरे " कीनाश " चले ,,

रज को अपने माथे रखलूँ
श्रीराम के चरणों की
काल को हाहाकार करूं
मैं शिव के डमरू की ध्वनि सी ,,

बदल चुका है समय शेष
अब रणभूमि के खेलों का ,
मैं पाञ्चजन्य के शिखरों सा
अब श्री राम ही गाऊंगा !

लेकर शस्त्र समक्ष सामने
जो वीर भी आएगा ,
सौगन्ध मुझे उस त्रेता की
वो बाली बाली गायेगा !!

हाँ ! वो बाली बाली गायेगा !!


© निग्रह अहम् (मुक्तक )

【 GHOST WITH A PEN 】