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देवरानी-जिठानी
कितना हंसती थीं तुम,
कितना बोलती थीं तुम,
बड़ी-बड़ी आंखों को कितना
मटकाती थीं तुम,
रास्ते अलग जबसे हुए हमारे,
कितना बवाल मचाती थीं तुम,
तारीफ अपनी करते थकती न थीं,
पर आंखों में तेज बड़ा रखती थीं तुम,
रिश्ते में भले ही बड़ी थीं
पर उम्र में मुझसे छोटी हो तुम,
हमने सहेलियों सा जीवन जिया
अब क्यों बदल गयी हो तुम,
अब वो समय है कि फुर्सत में हैं
न तुम पर कोई जिम्मेदारी है
न हम पर कोई अब पर,क्यों
साथ नहीं हो पाते हैं हम,
आओ मिल जाएं एक साथ
हो जाएं,कहलाएं फिर वही
इक घर की सुलझी हुई बहुएं हम
देंगे मिसाल बहुओं को अपने हम।।
कितना बोलती थीं तुम,
बड़ी-बड़ी आंखों को कितना
मटकाती थीं तुम,
रास्ते अलग जबसे हुए हमारे,
कितना बवाल मचाती थीं तुम,
तारीफ अपनी करते थकती न थीं,
पर आंखों में तेज बड़ा रखती थीं तुम,
रिश्ते में भले ही बड़ी थीं
पर उम्र में मुझसे छोटी हो तुम,
हमने सहेलियों सा जीवन जिया
अब क्यों बदल गयी हो तुम,
अब वो समय है कि फुर्सत में हैं
न तुम पर कोई जिम्मेदारी है
न हम पर कोई अब पर,क्यों
साथ नहीं हो पाते हैं हम,
आओ मिल जाएं एक साथ
हो जाएं,कहलाएं फिर वही
इक घर की सुलझी हुई बहुएं हम
देंगे मिसाल बहुओं को अपने हम।।
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