मां के आखों में आसूं क्यूं है
जब तू दुनिया में आया था,कभी रोकर कभी मुस्कुराकर, अपना हर बात जताया था।
तू कुछ ना कहता , पर में बहत कुछ सुन लेती थी,
तू जताता नहीं था,पर के तेरी हर चाहत बुझ लेती थी।
पूरा करने को तेरी हर जिद्द,में कभी खुद से,
कभी जमानेसे लड़ जाती थी।
आज में बोल सकती हूं,अपनी हर चाहत ,
तेरे सामने खोल सकती हूं।
फिर क्यों सुन कर अनसुना करता है तू??
फिर...
तू कुछ ना कहता , पर में बहत कुछ सुन लेती थी,
तू जताता नहीं था,पर के तेरी हर चाहत बुझ लेती थी।
पूरा करने को तेरी हर जिद्द,में कभी खुद से,
कभी जमानेसे लड़ जाती थी।
आज में बोल सकती हूं,अपनी हर चाहत ,
तेरे सामने खोल सकती हूं।
फिर क्यों सुन कर अनसुना करता है तू??
फिर...