...

9 views

गम-ए-यार
वो मुझे चाहता है और कहता है खुदा कुछ भी नही,
तुम्हें छू कर देखूं तो यकीं हो वरना वफा कुछ भी नही।

कस भरता है सिगरेट के और शराब गले से उतार देता है,
वो मेरा गम पी गया उसके लिए ये ज़हर कुछ भी नही।

मेरी उजालों की खातिर वो खुद को जला सकता है,
नही चाहिये मुझे चाँद, सूरज, सितारे और सहर कुछ भी नही।

वो मुझे किसी की भूख कहता है फिर स्वाद पूछता है,
दिल की इस चोट से इस ज़ख्म से गहरा और कुछ भी नही।

समन्दर पास रखता है मगर पीता नही है कभी,
उसके लिए मायने दरिया हो या सहरा कुछ भी नही।

वो कहता है जो मेरा है वो मेरा ही रहेगा मरते दम तक,
जो नही है मेरा वो मेरा कुछ भी नही।