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मेरी पेहचान
"में एक बेटी"
करती अठखेलियां बाबुल का थामे हाथ
चेहकती जैसे कोई चिरैया करती पुकार।
कब हो गयी बड़ी समझ न पाई छूटा बाबुल का आँगन द्वार।
"में एक पत्नी"
देती हर मुश्किल में अपने पिया का साथ।चलती रहती कर्तव्य पथ पर लेके अपनों को साथ।
"में एक माँ"
भूल गयी हर नाते रिश्ते जब ली हाथों में मैने एक नन्ही जान। माँ शब्द ने दिलाया याद मुझे पल पल अपनी माँ के जीवन का बलिदान।
"में एक नारी"
अंतः जीवन है एक साग़र में चली थी उसमें लेकर अपनी रिश्तो की नाव। में थी खेवैया हर रिश्ते की। हर रिश्ते को दिलाया मेने मुक़ाम। ये है संपूर्ण नारी के जीवन की पेहचान। चाहते सब उस से पर वो न चाहती कुछ किसी से।
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