अश्कों के बीज
फ़ासले हैं कहाँ तक बिखरे
गिन रहा हूँ क़दमों से अब मैं,
अब्र-ए-आज़ारी मुझपे ही क्यूं है,
पूछता हूं आसमां से अब मैं
गुम हो रहा तेरा चेहरा क्यूं,
हो रहा ये दरिया सहरा क्यूं...
नासूर होता ही जाए अब...
ये ज़ख्म इतना है गहरा क्यूं
रोने दे, फ़िज़ा ये नम होने दे
अब बीज अश्क़ों के बोने दे...
अपना कहूं मैं हक़ से तुझे,
ज़िद नहीं ये मन्नत है मेरी...
लम्हों में अपने रख ले मुझे,
बस उसी में फिर...
गिन रहा हूँ क़दमों से अब मैं,
अब्र-ए-आज़ारी मुझपे ही क्यूं है,
पूछता हूं आसमां से अब मैं
गुम हो रहा तेरा चेहरा क्यूं,
हो रहा ये दरिया सहरा क्यूं...
नासूर होता ही जाए अब...
ये ज़ख्म इतना है गहरा क्यूं
रोने दे, फ़िज़ा ये नम होने दे
अब बीज अश्क़ों के बोने दे...
अपना कहूं मैं हक़ से तुझे,
ज़िद नहीं ये मन्नत है मेरी...
लम्हों में अपने रख ले मुझे,
बस उसी में फिर...