...

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प्रकृति का न्याय
*मेरी स्वरचित पहली कविता* 🌳🌳


उजड़ते जंगल देखें....उखड़ते पर्वत देखे,
सूखती नदिया देखी, खाली समुद्र भी देखें।
रे इंसान!.......देख तेरे कर्म इसने उम्र तेरी नापी होगी,
अब न्याय करेगी प्रकृति इसकी सजा क्या माफी होगी।।

जब जीव–जीव को मारते देखा......जाने कैसे सोई होगी,
लुटती देखा अस्मत अबला की खुद भी कितना रोई होगी।
अरे!देख मंजर कयामत के रूह भी इसकी कांपी होगी,
अब न्याय करेगी प्रकृति इसकी सजा क्या माफी होगी।।

उजड़ती देख कोंख अपनी जानें कैसे दर्द छुपाई होगी,
नम आंखे बादल बना...अश्रु बना नदिया बहाई होगी।
रे इंसान!..............तेरे कर्मों से ये मां क्यों पापी होगी
अब न्याय करेगी प्रकृति इसकी सजा क्या माफी होगी।।

उर्वरा हो गई है आज बंजर यहां पर,
हर हाथ हो गई है आज खंजर यहां पर।
ये तेरे नही–मेरे नही इसी के सीने में घोंपी होगी,
अब न्याय करेगी प्रकृति इसकी सजा क्या माफी होगी।।

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet143