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रिहाई
बदरी बदरी मौसम सी,
जीवन की परछाईं
मद्धम मद्धम सावन सी
आंखों में समाई
बरसी नदियां आंखों से
भींग गई, दुहाई
ओ माझी,
उस पार खड़ा क्यों
इस पार है तेरी रिहाई
बांटन से बढता,जो दुख है
साध सका तो बिता
जीवन की रीत यही है
निश्छल सा बस प्रीता
प्रेयसी जीवन रस ,कीजे
पावत वो जो सींचा
धूप को क्या दिए की जरुरत
मन की दीप जलाई
ओ माझी,
उस पार खड़ा क्यों
इस पार है तेरी रिहाई ।
© Gitanjali Kumari
जीवन की परछाईं
मद्धम मद्धम सावन सी
आंखों में समाई
बरसी नदियां आंखों से
भींग गई, दुहाई
ओ माझी,
उस पार खड़ा क्यों
इस पार है तेरी रिहाई
बांटन से बढता,जो दुख है
साध सका तो बिता
जीवन की रीत यही है
निश्छल सा बस प्रीता
प्रेयसी जीवन रस ,कीजे
पावत वो जो सींचा
धूप को क्या दिए की जरुरत
मन की दीप जलाई
ओ माझी,
उस पार खड़ा क्यों
इस पार है तेरी रिहाई ।
© Gitanjali Kumari
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